यह कहानी हैं ऐसे व्यक्ति के संघर्ष के बारे में जिसने किसानों को मुनाफा (पैसे) कमाने का मौका दिया|कुरियन के पास इतनी डिग्रियां थी कि वह अगर चाहते तो कोई उच्चे पद की नौकरी कर सकते थे| वर्गीस कुरियन को संपति का अभाव नहीं था उनके पिता कोच्ची में सिविल सर्जन थे| लेकिन उनमे कुछ कर दिखाने का जूनून था|
इसलिए उन्होंने दूध उद्योग को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और कई नामों से उद्योग खोलकर लोगों को नौकरी देने के साथ-साथ मुनाफा भी कमाया| पदभूषण और पदश्री जैसे सम्मानों से अलंकृत डाॅ कुरियन कई लोगों के लिए प्ररेणास्त्रोत हैं|
रोमांचक बात यह हैं की इस अनुठी कहानी को रचने वाले व्यक्ति की क्रांति से जाने-अनजाने हम सभी जुडे हुए हैं. फिर वह चाहे अमूल के नाम के जरिए ही क्यों न हो|यह कहानी हैं अमूल के संस्थापक वर्गिस कुरियन की|
STORY BEHIND AMUL’S SUCCESS
आम तौर पर भौतिकी में स्नातक, BE Mechanical और America से Master Of Science जैसी Degree लेने के बाद Iron steel, petro chemical और Automated Manufacturing जैसे असीमित संभावनाओं वाले क्षेत्रों में इन डिग्रीयोंधारियों वाले व्यक्ति का स्वागत शानदार नौकरी और बेशुमार पैसे से होता है.
लेकिन यदि इन डिग्रीयों के बावजूद कोई भैस के दूध का उत्पादन Milk Powder, Condensed milk और डेयरी उत्पादों पर काम करता नजर आये तो यह कुछ अटपटा लग सकता है और शुरू में लोग उसे बेवकूफ़ भी कह सकते हैं|
डाॅ वर्गीस कुरियन ही वह Mechanical Engineer हैं जिन्होंने दूध उद्योग में नई क्रांति को जन्म दिया| मद्रास के लोयोला काॅलेज से भौंतिकी में स्नातक, मद्रास से BE Mechanical और America की Michigan University से Mechanical Engineering में Master of science की उपाधि लेने के बाद डाॅ कुरियन ने अपनी किस्मत को दूध उद्योगों में अपनाया और अपने प्रयासों की बदोलत इस क्षेत्र में नई उचाइयां दी|
उनका विश्वास था कि समृद्धि मोटी तनख्वा से नहीं आती बल्कि अपनी प्रतिभा को उस जगह इस्तेमाल करने से आती हैं, जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है|
FARTHER OF WHITE REVOLUTION – श्वेत क्रांति के जनक
समृद्धि की यह नींव तब पडी जब डाॅ कुरियन गुजरात के आंणद शहर पहूंचे| वे गवर्नमेंट रिसर्च डिपार्टमेंट में बतौर डेयरी इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए| वहां से छोटी और बडी से बडी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया|
विज्ञान के छात्र के रूप में प्रयोंगों के प्रति उनका झुकावा होना स्वाभाविक था और इसीलिए उन्होंने कुछ नये प्रयोग भी किए जैसे गाय के दूध की बजाय भैस के दूध का उत्पादन करना. अपने अनुभव से उन्होंने सहकारी समितियों में यह प्रस्ताव रखा कि किसान स्वयं के लघु उद्योग में प्रबधन करके अच्छा मुनाफा कमाये|
OPERATION FLOOD
वह “Farther Of White Revolution”(श्वेत क्रांति) व Milk Men Of India के रूप में मशहूर हुए हैं| डाॅ वर्गीस ने विशाल डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम को आपरेशन फ्लड के नाम से चलाया. यह उस समय दुनिया का सबसे बडा डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम था और किसानों और ग्रहणीयों के लिए मुनाफे का आधार बना|आपरेशन फ्लड के कारण 72000 भारतीय गाँव दूध उत्पादक बने|
उनके क्रांतिकारी प्रयोग न केवल सफल रहे बल्कि उपलब्धि माने गये लेकिन कुरियन ने इस सरकार द्वारा मिली छात्रवृत्ति और उससे हासिल की गई शिक्षा को देश के विकास में अपने योगदान के रूप में लौटाने से अधिक कुछ नहीं माना|
यहां तक कि जो प्रयोग दुनिया को क्रांतिकारी लगते थे वे कुरियन को संतुष्ट तक नहीं कर पाये. अपने योगदान से असंतुष्ट कुरियन ने वहां से जाने का मानस बना लिया. कुरियन ने बेशक कंपनी बदल दी लकिन आणद उनकी कर्मभूमि बन चुका था|
गर्वनमेंट रिसर्च क्रिमरी की नौकरी छोडने के तुरन्त बाद त्रिभूवन दास से जुडने का प्रस्ताव आया जो कायरा खेडा डिस्ट्रिक्ट को-ओपरेटिव मिल्क प्राड्सर्स युनियन लिमिटेड के संचालक थे, जिन्हें नियुक्त करने का निर्णय उस वक्त खेडा कांग्रेस की बागडौर संभाल रहे सरदार पटेल और मोरारजी देसाई ने लिया था.
त्रिभूवनदास सत्याग्रही भी थे और Kaira District Cooperative Milk Producers Union Limited (KDCMPUL),KDCMPUL के माध्यम से सहयोगात्मक आंदोलन चलाना चाहते थे. त्रिभुवनदास के आग्रह को कुरियन ठुकरा न सके| दरअसल इस आग्रह से ज्यादा महत्वपूर्ण उनके लिए वह चुनौती थी जो KDCMPUL के रूप में उनेक सामने खडी थी.
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कुरियन ने केडीसीएमपीयुएल को तब थामा जब वहां पेस्टानजी एदुल जी की पोलसन का एकाधिकार था और KDCMPUL काफी कमजोर हालत से गुजर रही थी. KDCMPUL की चुनोतियां बहुत आसान नहीं थी. इसका प्रमाण था कि यहां प्रवेश करते ही उन्हें कहीं संघर्षों का सामना करना पडा लकिन कोई भी बाधा कुरियन के इरादों को झुका न सकी.
KDCMPUL के मैनेजर के रूप में प्रबंधकीय काम निभाने के आलावा उन्होंने मंत्रियों अधिकारियों और सिविल सर्वेंटस का भी सामना किया और निर्णायक परिणाम हासिल किए. उनकी मेहनत और लगन रंग लाने लगी.
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वे एक के बाद एक सफलता हासिल करने लगे. इस दौरान लगातार त्रिभूवनदास लगातार उनके पथ प्रदर्षक सलाहकार और नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाते रहे. अभी और भी मंजिलें तय करनी बाकी थी जिन्हें हासिल करने के लिए कुरियन ने मजबूत रणनीति के तहत 1946 में चकलासी गांव में मिटींग की.
इस मिटिंग में दो ऐतिहासिक प्रस्ताव स्वीकृत हुए जिसके परिणाम स्वरूप भारत में डेयरी सहकारिता आंदोलन समूह की नींव रखी गई. जिसके तहत किसानों ने भी निश्चय किया था की वे पोलसन को दूध की आपूर्ति नहीं करेंगे तथा हर गांव में सहकारी समितियों का निर्माण व आंणद मे यूनियन की स्थापना करेंगे.
धीरे-धीरे सभी मुद्दों को संचालित किया जाने लगा और कुरियन व त्रिभूवनदास दोनों एक-दूसरे के आदर्ष साझेदार साबित होने लगे. दोनों ने अपने-अपने स्तर पर काम बांट लिया. जहां एक तरफ त्रिभूवनदास राजनैतिक और सामाजिक प्रक्रिया को सभांलते थे वहीं दूसरी तरफ कुरियन ने टेक्नोक्रेट के रूप में किसानों का सेवाकार बनना स्वीकार किया.
साथ ही कुरियन ने अपने सामने खुद ही लक्ष्य तय किये इन लक्ष्यों का मूल ईमानदारी, ध्येय, और पारदर्षिता थी और बेहतर गुणवत्ता मुख्य उद्देष्य था. डाॅ कुरियन के शब्दों में –
मैं हमेशा से मानता था कि ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण हैं साथ ही अपना काम दृढता से करो और अपने प्रयासों को थमने न दो यही सफलता का रहस्य है.
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अपनी इसी सोच के साथ उन्होंने प्रयास जारी रखे. KDCMPUL को एक मुकाम देने के बाद उन्होंने नये प्रयोग के रूप में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना की ताकि आणद पेटर्न को विश्वस्तरीय बनाया जा सके.
धीरे-धीरे KDCMPUL की उपलब्धियों ने शवेत क्रांति को जन्म दिया. यह इतना प्रभावी था कि इसका प्रचार श्याम बेनेगल की डाक्यूमेंट्री मंथन में दिखा. दरअसल इस क्रांति ने दूध उद्योग का चेहरा बदल कर रख दिया.
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FOUNDATION OF AMUL
कुरियन जानते थे कि उनका काम अभी खत्म नहीं हुआ है. KDCMPUL की सफलता के बाद उन्होंने अमूल पैटर्न की नींव रखी उस वक्त गिने चूने लोगे ही इसके बारे में जानते थे और इस बात से अनजान थे कि एक दिन यह विश्व स्तर पर एक ब्रांड के रूप में उभरेगा.
धीरे-धीरे अमूल की गिनती श्रेष्ठ ब्रांड में होने लगी और विज्ञापन द्वारा उसका प्रचार-प्रसार होने लगा. उसकी पंचलाईन “द टेस्ट आॅफ इंडिया” “अटरली-बटरली डिलीसियस” “अमूल दूध पीता है इंडिया” हर किसी की जुबान पर था.
आज अमूल एक स्थापित ब्रांड है. अमूल की कामयाबी हासिल करने के बाद डाॅ वर्गीस ने इंस्टीट्यूशन का निर्माण शुरू किया और एक के बाद एक प्रधान संस्थाओं का निर्माण शुरू किया. जैसे नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड NDV 1965, गुजरात को-आॅपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन GCMMF 1973.
वह मैनेजमेंट के प्रमुख संस्थान IIMS अहमदाबाद और बेंगलुरु के सदस्य भी रहे. उनके काम को सरकार ओर कई प्रतिष्ठि संस्थाओं ने सराहा और कई पुरस्कारों से नवाजा. लेकिन कुरियन ने हमेशा इसे अपने देश के लिए किये गये छोटे से प्रयास के रूप् में देखा और प्रत्येक उपलब्धि, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा को देश और लोगों की संपति की तरह समझा.
उनका विश्वास था कि लोगों के सहयोग से आणंद सफलता तक पहुँच पाया है. अगर गरीब किसान और पशुपालक खुद सबल नही बनना चाहते, तो वे कभी सफल नही हो पाते.
कुरियन के द्वारा लिखी गई किताब – “आई टू हेड हे ए ड्रीम” में उन्होंने अपने जीवन के तमाम संघर्ष और उपब्धियों को जिक्र किया है. वे कहते हैं मेरे जीवन का सिद्धांत यही हैं कि
मैं उन लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छा काम करूं जो गरीब व असहाय है. लेकिन मैं अपनी जिंदगी एक साधारण आदमी की तरह व्यतित करूं.
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कुरियन अपने शद्बों को जीने वाले में से है. इसका प्रमाण हैं उन्होंने गरीब किसानों और दलित आदिवासियों को आगे आने का मौका दिया और आज अमूल पूरे देश में प्रसिद्ध है|
उनके जन्मदिन को “राष्ट्रीय दूध दिवस (National Milk Day)” के रूप में मनाया जाता हैं
समृद्धि को देखने को सबका अपना नजरिया होता है. कोई मोटी तनख्वा में देखता हैं तो कोई प्रसद्धि में तो कोई दूसरे के हितों में. डाॅ वर्गीस कुरियन उन लोगों में से हैं जिन्हें कमजोर लोगों को सबल बनाने में यह समृद्धि नजर आयी. उनके प्रयासों और सफलता ने इसी विश्वास को साबित कर दिखाया. उन्होंने इजीनियरिंग में पढाई के बावजूद दूध उद्योग को अपना कार्यक्षेत्र बनाया जहां लोगों को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत थी.Hot Downloads of 2015 !
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