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Friday 28 July 2017

Success Story Behind Mrityunjay Singh Founder VihanApp


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Tuesday 25 July 2017

दुनिया के सबसे तेज धावक “उसैन बोल्ट”

यक़ीनन दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली एथलिट, उसैन सेंट लियो बोल्ट – Usain Bolt ने 2016 के रिओ ओलिंपिक में ‘ट्रिपल ट्रिपल’ गोल्ड मैडल जीतकर इतिहास रचा था। उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक्स में तीन गोल्ड मैडल जीते है। अपनी इसी जीत को उन्होंने 2012 के लन्दन ओलिंपिक खेलो में भी बरक़रार रखा और गोल्ड मैडल जीतकर अपना नाम विश्व इतिहास की किताब में दुनिया के सबसे तेज धावक के रूप में दर्ज किया।
अपने 30 वे जन्मदिन के एक दिन पहले ही 2016 के रिओ ओलिंपिक खेलो में उन्होंने गोल्ड मैडल जीतकर अपनी जीत का तिहरा पूरा किया और विश्व के इतिहास में ऐसा करने वाले पहले खिलाडी भी बने।
Usain Bolt

दुनिया के सबसे तेज धावक “उसैन बोल्ट” – Usain Bolt Biography

14 साल की उम्र में ही पश्चिम जमैका की स्थानिक चैंपियनशिप में अपनी दौड़ने की गति देखकर उनकी आँखे खुल गयी थी। उसैन बोल्ट शिखर के चढ़ाई की शुरुवात जब उन्होंने शालेय स्पर्धाओ में भाग लेकर मैडल जीता था तभी हो चुकी थी और इसके बाद उन्होंने लंबी कूद में भी भाग लेना शुरू किया और लंबी कूद में उन्होंने अपनी स्कूल के लिए ब्रोंज मैडल भी जीता है।
अपने साथियों की तुलना में लगातार आगे बढ़ते रहने के बाद बोल्ट लंबी कूद में काफी मैडल जीतने लगे और कहा जाता है की क्रिकेट खेलते समय भी वे एक तेज गति के गेंदबाज की भूमिका निभाते थे।
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2001 से बोल्ट ने दौड़ में अपने नाम का विश्व रिकॉर्ड बनाने की ठान ही ली और 2002 में उन्होंने कैथरीन हॉल में आयोजित वेस्टर्न चैंप्स फाइनल में 200 मीटर की दौड़ को 20.3 सेकंड हात में रहते हुए जीत ली।
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इसके बाद वे बहमास और नासाउ में आयोजित खेलो में चार गोल्ड मैडल जीतने से पहले वे CARIFTA ट्रायल्स में 200/400 मीटर डबल्स जीतने के लिए निकल पड़े।
2004 में बरमूडा के हैमिलटन में CARIFTA खेलो में 200 मीटर की दौड़ को 19.93 सेकंड में पूरा कर उन्होंने वर्ल्ड जूनियर रिकॉर्ड तोडा। लेकिन इसके बाद घुटने के चोट की वजह से बोल्ट के दौड़ने की तेजी कम हो चुकी थी। फिर भी फ़िनलैंड में 2005 में IAAF वर्ल्ड टी & एफ चैंपियनशिप में उन्होंने हिस्सा लिया ठण्डे मौसम और चोट की वजह से वहाँ वे अच्छा प्रदर्शन नही कर पाए।
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इसके बाद 2006 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित कामनवेल्थ खेलो में 4*100 की दौड़ में IAAF की हाई परफॉरमेंस टीम की तरफ से प्रदर्शन करते हुए उन्हें एक और घुटने की चोट लग गयी और इससे उनके करियर में एक और बदलाव आया।
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कुछ समय बाद, किसी तरह से वे ठीक हुए और उसी साल 200 मीटर की दौड़ को 19.88 सेकंड में पूरा कर उन्होंने अपना व्यक्तिगत रिकॉर्ड बनाया और जर्मनी के स्तुत्त्गार्ट में आयोजित IAAF वर्ल्ड कप ऑफ़ एथलिट में 200 मीटर की दौड़ में दुसरे स्थान पर काबिज रहे।
2007 साल उनके लिए रिकार्डो को तोड़ने वाला साल साबित हुआ, इसी साल उन्होंने 30 साल पुराने 200 मीटर की दौड़ वाले जमैशियन रिकॉर्ड को तोडा और जमैशियन सीनियर टी & एक चैंपियनशिप को 19.75 सेकंड में पूरा कर जीत लिया। इसके बाद 2007 में ही जापान के ओसका में आयोजित IAAF वर्ल्ड टी & एफ चैंपियनशिप में उन्होंने भाग लिया और 200 मीटर एवं 4*100 मीटर की रिले दौड़ में दो सिल्वर मैडल जीतने में सफल रहे।
2008 भी उनके लिए रिकार्डो को तोड़ने वाला साल साबित हुआ, इस साल उन्होंने कयी इतिहास रचे और ग्रह के सबसे तेज धावक भी बने। दिन रात संघर्ष और मेहनत कर वे लगातार चैंपियनशिप जीतते चले जा रहे थे और ओलिंपिक खेलो के साथ-साथ बहुत से स्थानिक खेलो में भी उन्होंने जीत दर्ज की। जिनमे मुख्य रूप से बीजिंग, लन्दन और रिओ के ओलिंपिक खेलो की जीत और बर्लिन, डेगू, मास्को और बीजिंग की IAAF वर्ल्ड टी & एफ चैंपियनशिप भी शामिल है।
जुलाई 2012 में जब उन्होंने किंग्स्टन में IAAF वर्ल्ड जूनियर टी & एफ चैंपियनशिप जीती, तब मेजबान देश के लिए गोल्ड मैडल जीतने वाले वे पहले धावक थे और 200 मीटर की दौड़ उन्होंने मात्रा 20.61 सेकंड में पूरी कर ली। इन खेलो में बोल्ट ने तीन मैडल जीते, जिनमे दो सिल्वर मैडल भी शामिल है। साथ ही वे इन खेलो में 4*100 टीम का भी हिस्सा थे।
यही उनकी चमत्कारिक चढ़ाई की शुरुवात थी, इस दौरान उन्होंने IAAF राइजिंग स्टार अवार्ड भी जीता था।
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उनका करियर इतना आसान भी नही रहा, कयी बार चोटों ने भी उनके मौको पर पानी पानी फेरा है।
चार बार (2009, 2010, 2013 और 2017) उसैन बोल्ट को लॉरेस वर्ल्ड स्पोर्ट्समैन ऑफ़ दी इयर के अवार्ड से नवाजा गया है। साथ ही छः बार (2008, 2009, 2011, 2012, 2013 और 2016) बोल्ट को IAAF मेल एथलिट ऑफ़ दी इयर के अवार्ड से नवाजा गया है। प्यूमा के साथ संयोजित रूप से उनकी खुद की कपडो की कंपनी भी है। उनकी खुद की घडी का निर्माण हुब्लोट ने किया है। जमैका के किंग्स्टन में ‘ट्रैक & आर्डर’ नाम का उनका खुदका रेस्तौरेंट भी है। चैंपियन शेव के नाम से उनकी एक शेविंग कंपनी भी है। “उसैन बोल्ट फाउंडेशन” नाम की उनकी खुद की एक संस्था है और साथ ही विश्व के कुछ चुनिंदा ब्रांड्स का उन्होंने समर्थन भी किया है।
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विमान के पहले खोजकर्ता “राइट बंधू”

राइट बंधू के नाम से मशहूर ओर्विल और विल्बुर (16 अप्रैल 1867 – 30 मई 1912) असल में दो अमेरिकी भाई, खोजकर्ता और विमान के पहले खोजकर्ता है, जिन्हें दुनिया के पहले सबसे सफल एयरप्लेन की खोज करने, बनाने और उसे उड़ाने का श्रेय दिया जाता है। 17 दिसम्बर 1903 को उन्होंने पहली नियंत्रित और निरंतर उड़ान भरने वाली फ्लाइट बनाई थी, जो एयरक्राफ्ट से भी ज्यादा भारी थी। 1904-05 में राइट बंधुओ ने पहले प्रैक्टिकल तय विंग विमान में फ्लाइंग मशीन विकसित की थी।
राइट बंधू विमान को बनाने और उड़ाने वाले पहले व्यक्ति ही नही बल्कि विमान को नियंत्रित करने वाली फ्लाइट की खोज करने वाले भी वे पहले व्यक्ति थे।
Wright brothers

विमान के पहले खोजकर्ता “राइट बंधू” – Wright Brothers Biography

इन बंधुओ को अपनी मौलिक सफलता तीन-अक्षो को नियंत्रण करने में मिली, जिससे पायलट आसानी से विमान को रास्ते पर ला सकता था और उसके संतुलन को भी बनाए रख सकता था। इसके बाद से यही विधि सभी प्रकार के विमानों को नियंत्रित करने की विधि बन चुकी थी।
वैमानिक कार्य के शुरू से ही राइट बंधू का ध्यान पायलट के नियंत्रण के लिए एक विश्वसनीय तरीका विकसित करने पर था, ताकि पायलट उड़ने के दौरान आणि वाली समस्याओ को दूर कर सके। उनका यह दृष्टिकोण उस समय के दुसरे खोजकर्ताओ से काफी अलग था। उस समय दुसरे खोजकर्ता शक्तिशाली इंजन को विकसित करने में ज्यादा ध्यान लगा रहे थे।
छोटी और घर पर ही बनाई हुई हवा सुरंग का उपयोग कर, राइट ने सटीक डाटा भी जमा कम लिया था, जिनकी सहायता से वे आसानी से डिजाईन और पंख बना सके और इससे पहले इतना सटीक डाटा किसी ने जमा नही किया था। उनका पहला यूनाइटेड स्टेट पेटेंट, 821393, इस बात का दावा नही करता की उन्होंने ही फ्लाइंग मशीन की खोज की है लेकिन इसकी बजाये उसमे वैमानिक नियंत्रण तंत्र की खोज का उल्लेख किया गया है।
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इसके बाद अपनी दूकान में प्रिंटिंग प्रेस, बाइसिकल, मोटर्स और दूसरी मशीनो के साथ काम करके उन्होंने काफी मैकेनिकल ज्ञान और तकनीके हासिल कर ली थी। बल्कि बाइसिकल के साथ किये गये उनके कार्यो ने उनके भरोसे को और अधिक बढाया और उन्हें इस बात का यकीन भी हो चूका था की अनियंत्रित गाड़ी जैसे फ्लाइंग मशीन को कोशिशो के साथ नियंत्रित और संतुलित भी किया जा सकता है।
1900 से 1903 में अपन पहली पॉवर फ्लाइट तक उन्होंने व्यापक ग्लाइडर टेस्ट करवाए, जिससे पायलट के रूप में उनका कौशल भी विकसित होता गया। उनकी बाइसिकल शॉप का एम्प्लोयी चार्ली टेलर उनके समूह का मुख्य सदस्य बन चूका था, राइट बंधुओ ने अपने पहले एयरप्लेन इंजन का निर्माण उसके साथ मिलकर ही किया था।
राइट बंधुओ को एयरप्लेन की खोज का दर्जा दिए जाने पर बहुत से लोगो ने इसके अधिन शंका भी जाहिर की थी। प्राचीन उड़ाकूओ ने भी इसका विरोध किया और उस समय एक बड़ा विवाद खड़ा हो चूका था। उस समय डेटन एविएशन हेरिटेज नेशनल हिस्टोरिकल पार्क के इतिहासकार एडवर्ड रोअच ने यह दावा किया था की वे खुद एक अच्छे इंजिनियर है, जो छोटी कंपनी चलाते है, लेकिन उन्होंने कहा था की मुझमे एविएशन उद्योग को नियंत्रित करने वाली योग्यताए और कौशक नही है।
पारिवारिक फ्लाइट:
25 मई 1910 को हुफ्फ्मन प्रैरी वापिस आकर ओर्विल्ले ने दो फ्लाइट को संचालित किया। पहली उड़ान उन्होंने 6 मिनट की फ्लाइट में विल्बुर के पास यात्री के रूप में भरी और यही एकमात्र समय था जब राइट बंधू ने साथमे उड़ान भरी हो। उस समय उन्हें उनके पिता से भी उड़ान भरने की इजाजत मिल चुकी थी। वे अक्सर मिल्टन को कहते रहते थे की वे कभी साथ में यात्रा नही करते, क्योकि ऐसा करके वे कभी भी किसी दोहरी त्रासदी का शिकार नही बनना चाहते।
क्योकि उनके अनुसार उड़ान के दौरान यदि कोई त्रासदी होती भी है, तो एक भाई को तो भी प्रयोग करने के लिए जीवित रहना होंगा। दूसरी उड़ान में वे अपने 82 साल के पिता को अपने साथ 7 मिनट की फ्लाइट में ले गये। उस समय यह विमान तक़रीबन 350 फीट ऊँचा गया था। इतना ऊँचा जाने के बावजूद बड़े राइट ने अपने बेटे से कहा था, “और ऊँचा ओर्विल्ले, और ऊँचा।”

Shoe Laundry खोजनेवाला संदीप गजाकस

successful motivational story in hindi sandeep gajakasहते है खोजनेवाला खुदा को भी खोज लेता हैं, अगर दिल मैं आगे बढ़ने की चाह हैं तो किसी भी मुश्किल से आसानी से जित सकते हैं, ऐसे ही एक दुनिया से हटके Idea पर आधारित एक अनोखा business मुंबई के ही एक युवक ने सुरु किया उस युवक का नाम है संदीप गजाकस
क्या है संदीप का अनोखा बिजनेस ? संदीप गजकास इस युवक का बिजनेस है बहुत ही सरल और साधा लॉन्ड्री का! हा, संदीप ने सुरु की है लॉन्ड्री, पर कपडो की लॉन्ड्री नहीं तो Shoe Laundry मतलब जुतो की लॉन्ड्री। क्या चौक गए न सुनकर? शुज धोकर और साफ कर के कोई फायदेवाला business खड़ा कर सकते है ऐसी किसीको भी जानकारी नहीं थी,फिर भी खुद के सेविंग मे से कुछ पैसे जमा करके संदीप में भारत में पहिली Shoe Laundry सुरु की।
यह बिलकुल अलग और नया होने के बावजूद सरल बिजनेस है, मुंबई के मिठीबाई कॉलेज पढ़ते समय संदीप को Shoe Laundry का खयाल आया संदीप के कॉलेज में पढ़नेवाले कुछ बड़े घर के लड़के उनके शुज के बडे बेफिकर थे। एक बार पहने के बाद जरासा भी ख़राब हुए तो वो शुज फ़ेंक देते थे। उस समय संदीप ने अपने दोस्तों से लगाये हुए शर्थ में से इस सोच का उदय हुआ। संदीप ने सिर्फ शर्थ के लिए उसके दोस्तों के शुज एकदम नए जैसे कर के लाये। इतने अच्छे की उसके दोस्तों को वो शुज उसके ही है इसपर भरोसा ही नहीं हुआ, उसी समय संदीप को Shoe Laundry की Idea आयी।
पर आगे Collage पूरा होने के बाद संदीप ने लोगो जैसी नोकरी करने की रह चुनी, Fashion Choreographer, Event Manager, Football Player और Call Center यैसे बहुत से जॉब उसने किये कॉल सेन्टर पर जॉब करते समय संदीप ने ग्राहक के साथ बातचीत करने का अच्छा Experience लिया। उसके बाद संदीप को उसके पुराने Idea का खयाल आया और उसने Shoe Laundry सुरु करने का फैसला किया पर उसके इस business के Idea के बारे मे उसके पिताजी को नहीं समजा पाया, So,
the-shoe-laundry-sandeep gajakasकिसी के भी Support के बिना संदीपने उसका बिजनेस सुरु किया। उसके बेडरूम मे ही उसने वर्कशॉप शुरू किया। दोस्तों के मदत से कुछ छोटा मार्केटिंग कैम्पेन किये शुरुवात को संदीप ने खुदही मार्केटिंग, क्लीनिंग, डिलीवरी, और बिलिंग ये सब संभाला। संदीप उसके ग्राहकों को बताता था की आज डिलीवरी बॉय दुसरे जगहपर गया है इसलिए मैं खुद ही डिलीवरी लेने के लिए आया हु। संदीप कहता है की वैसे तो मुझे खुदको ही डिलीवरी करना अच्छा लगता है। क्योकि हमारे शुज बहुतही नए तयार हुए देखकर ग्राहकों के चेहरे पर खुलकर मुस्कान ख़ुशी देखना मुझे अच्छा लगता है।
मुंबई में जूतों को बहुतही धुल और बुरे Climate का सामना करना पड़ता है। इसलिए Shoe Laundry की जरुरत है, शुज की एक जोड़ी के क्लीनिंग के संदीप १२० रुपये लेते है। इसमे ग्राहकों के घर से जूता लेना, उसकी मरम्मत, साफ सफाई सुकाना और वापस ग्राहकों के घर पहुचाना इन सब चीजों का इसमे समावेश होता है। ऑफिस की जगह उसकी बजेट में नहीं आती इसलिए संदीप ने ग्राहकों के घर पर ही पिकअप और डिलीवरी करना शुरू किया।शोपर्स स्टॉप में से एक कस्टमर ने संदीप के shoe laundry के बारे मे बताने बाद शोपर्स स्टॉप ने उसे उन्होंने बेचे हुए जूतों की आफ्टर सेल्स सर्विस मतलब बिकने के बाद सेवा पहुचाने कॉन्ट्रैक्ट दिया। उसके बाद संदीप ने कभी भी पीछे मुड़कर देखा नहीं आज Adidas, Puma Shoes के जेसे लगभग सभी बड़ी ब्रैंड की मुंबई की बिकने के बाद सेवा संदीप संभालता है।

Tuesday 18 July 2017

कैसे 21 वर्ष के युवा ने बनाई 360 करोड़ की कंपनी – Startup Story of Ritesh Agarwal : Founder Oyo Rooms



क्या आप यह विश्वास कर सकते हैं कि ऐसी उम्र जब हम और आप खुद को पूरी जिंदगी के लिए तैयार करते है या जब हम सब कड़ाके की ठंड में रजाई में दुबके रहते हैं और जब बरसात के दिनों में नम हवा अलसाकर हमारे दिमाग पर नशे की तरह छा रही होती हैं, जीवन के ऐसे नाजुक पड़ाव पर किसी युवा ने आँखों में स्वयं कुछ बड़ा करने के सपने लिए रोज 16 घंटे काम कर 360 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी की नींव रख दी हो?


ऐसा कर दिखाया है उड़ीसा के रीतेश अग्रवाल (Ritesh Agarwal) ने; जिन्होंने 20 वर्ष की कम उम्र में Oyo Rooms नाम की कंपनी की शुरूआत कर बड़े-बड़े अनुभवी उद्यमियों और निवेशकों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। ओयो रूम्स का मुख्य उद्देश्य ट्रैवलर्स को सस्ते दामों पर बेहतरीन मूलभूत सुविधाओं के साथ देश के बड़े शहरों के होटलों में कमरा उपलब्ध कराना हैं।
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व्यक्तिगत तौर पर, रीतेश सामान्य बुद्धी वाले युवा हैं। दिखने में पतले, लंबे और बिखरे बालों वाले बिल्कुल किसी कॉलेज के आम विद्यार्थी की तरह। लेकिन कभी-कभी सामान्य से दिखने वाले लोग भी ऐसे काम कर जाते है जिसकी आपको उम्मीद नहीं होती। रीतेश भी एक ऐसे ही युवा उद्यमी है। जिन्होंने मात्र 21 साल कि छोटी सी उम्र में अपने अनुभव, सही अवसर को पहचानने की क्षमता और मेहनत के बल पर अपने विचारों को वास्तविकता का रूप दे दिया।
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युवाउद्यमी की बिज़नेसयात्रा – STARTUP JOURNEY OF RITESH AGARWAL

रीतेश अग्रवाल ने बिजनेस के बारे में सोचने और समझने का काम कम उम्र में ही शुरू कर दिया था| इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनके पारिवारीक पृष्ठभूमि की थी। उनका जन्म 16 नवम्बर 1993 को उड़ीसा राज्य के जिले कटक बीसाम के एक व्यवसायिक परिवार में हुआ है। बारहवीं तक कि पढ़ाई उन्होंने जिले के ही – Scared Heart School में की। इसके बाद उनकी इच्छा IIT में दाखिले की हुई। जिसकी तैयारी के लिए वे राजस्थान के कोटा आ गए। कोटा में उनके बस दो ही काम थे- एक पढ़ना और दूसरा, जब भी अवकाश मिले खूब ट्रैवल करना। यही से उनकी रूची ट्रैवलिंग में बढ़ने लगी। कोटा में ही उन्होंने एक किताब लिखी – Indian Engineering Collages: A complete Encyclopedia of Top 100 Engineering Collages और जैसा कि पुस्तक के नाम से ही लग रहा है, यह पुस्तक देश के 100 सबसे प्रतिष्ठीत इंजनीयरिंग कॉलेजों के बारे में थी। इस किताब को देश की सबसे प्रसिद्ध ई-कमर्स साईट् Flipkart पर बहुत पसंद किया गया।
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16 वर्ष की उम्र में उनका चुनाव मुंबई स्थित Tata Institute of Fundamental Research (TIRF) में आयोजित, Asian Science Camp के लिए किया गया। यह कैम्प एक वार्षिक संवाद मंच है जहां ऐशियाई मूल के छात्र शामिल किसी क्षेत्र विशेष की समस्याओं पर विचार-विमर्श कर विज्ञान और तकनीक की मदद से उसका हल ढूढ़ा करते हैं। यहां भी वे छुट्टी के दिनों में खूब ट्रैवल किया करते और ठहरने के लिए सस्तें दामों पर उपलब्ध होटल्स (Budget Hotels) का प्रयोग करते। पहले से ही रीतेश की रूची बिज़नेस में बहुत थी और इस क्षेत्र में वे कुछ करना चाहते थे। लेकिन बिज़नेस किस चीज का किया जाए, इस बात को लेकर वे स्पष्ट नहीं थे।
कई बार वे कोटा से ट्रेन पकड़ दिल्ली आ जाया करते और मुंबई की ही तरह सस्तें होटल्स में रूकते ताकि दिल्ली में होने वाले युवा-उद्यमियों के आयोजनों और सम्मेलनों में शामिल होकर नए युवा उद्यमियों और स्टार्ट-अप फाउंडर्स से मिल सके। कई बार इन इवेन्टस में शामिल होने का रजिस्ट्रेशन शुल्क इतना ज्यादा होता कि उनके लिए उसे दे पाना मुश्किल हो जाता। इसलिए कभी-कभी वो इन आयोजनों में चोरी-चुपके जा बैठते! यही वो वक्त था, जब उन्होंने ट्रैवलिंग के दौरान ठहरने के लिए प्रयोग किए गए सस्तें होटल्स के बुरे अनुभवों को अपने बिज़नेस का रूप देने की सोची।
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ORAVEL STAYS से की शुरूआत

वर्ष 2012 में उन्होंने अपने पहले स्टार्ट-अप – Oravel Stays की शुरूआत की। इस कंपनी का उद्देश्य ट्रैवलर्स को छोटी या मध्य अवधि के लिए कम दामों पर कमरों को उपलब्ध करवाना था। जिसे कोई भी आसानी से ऑनलाइन आरक्षित कर सकता था। कंपनी के शुरू होने के कुछ ही महीनों के अंदर उन्हें नए स्टार्टपस में निवेश करने वाली कंपनी VentureNursery से 30 लाख का फंड भी प्राप्त हो गया। अब रितेश के पास अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए प्रर्याप्त पैसे थे। उसी समय-अंतराल में उन्होंने अपने इस बिजनेस आईडिया को Theil Fellowship, जो कि पेपल कंपनी के सह-संस्थापक – पीटर थेल के “थेल फाउनडेशन” द्वारा आयोजित एक वैश्विक प्रतियोगिता है के समक्ष रखा। सौभाग्यवश वे इस प्रतियोगिता में दसवां स्थान प्राप्त करने में सफल रहे और उन्हें फेलोशिप के रूप में लगभग 66 लाख की धनराशि प्राप्त हुई।
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बहुत ही कम समय में उनके नये स्टार्टप को मिली इन सफलताओं से वे काफी उत्साहित हुए और वे अपने स्टार्ट-अप पर और बारीकी व सावधानी से काम करने लगे। लेकिन पता नहीं क्यों उनका ये बिजनेस मॉडल आपेक्षित लाभ देने में असफल रहा और “ओरावेल स्टे” धीरे-धीरे घाटे में चला गया। वे परिस्थिति को जितना सुधारने का प्रयास करते, स्थिती और खराब होती जाती और अंत में उन्हें इस कंपनी को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा।

जब ORAVEL STAYS बन गया OYO ROOMS

रीतेश अपने स्टार्ट-अप के असफल होने से निराश नहीं हुए और उन्होंने दुबारा स्वयं द्वारा अपनाई गई योजना पर विचार करने कि सोची ताकि इसकी कमियों को दूर किया जा सके।
इससे उन्हें यह अनुभव हुआ कि भारत में सस्ते होटल्स में कमरे मिलना या न मिलना कोई समस्या नहीं हैं, दरअसल कमी है होटल्स का कम पैसे में बेहतरीन मूलभूल सुविधाओं को प्रदान न कर पाना। विचार करते हुए उन्हें अपनी यात्राओं के दौरान बज़ट होटल्स में ठहरने के उन अनुभवों को भी याद किया जब उन्हें कभी-कभी बहुत ज्यादा पैसे देने के बाद भी गंदे और बदबूदार कमरें मिलते और कभी-कभी कम पैसों में ही आरामदायक और सुविधापूर्ण कमरे मिल जाते।
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इन्हीं बातों ने उन्हें फिर प्रेरित किया कि वे पुनः Oravel Stays में नये बदलाव करे एवं ट्रैवलर्स की सुविधाओं को ध्यान में रख उसे नये रूप में प्रस्तुत करें और फिर क्या था वर्ष 2013 में फिर ओरावेल लॉन्च हुआ लेकिन इस बार बिल्कुल नये नाम और मकसद के साथ। अब ओरावेल का नया नाम Oyo Rooms (ओयो रूम्स) था। जिसका मतलब होता है “आपके अपने कमरे”। ओयो रूम्स का उद्देश्य अब सिर्फ ट्रैवलर्स को किसी होटल में कमरा मुहैया कराना भर नहीं रह गया। अब वह होटल के कमरों की और वहां मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं की गुणवता का भी ख्याल रखने लगे और इसके लिए कंपनी ने कुछ मानकों को भी निर्धारित किया। अब जो भी होटल ओयो रूम्स के साथ जुड़ अपनी सेवाएं देना चाहता है। उसे सबसे पहले कंपनी से संपर्क करना होता है। इसके पश्चात कंपनी के कर्मचारी उस होटल में जा वहां के कमरों और अन्य सुविधाओं का निरीक्षण करते है। अगर वह होटल ओयो के सभी मानकों पर खरा उतरता है तभी वह ओयो के साथ जुड़ सकता है, अन्यथा नहीं।

सफलता के कदम – SUCCESS OF RITESH AGARWAL

इस बार रीतेश पहले की गलतियों को दुहराना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक बिजनेस फर्म – SeventyMM के सीईओ भावना अग्रवाल से मिल बिजनेस की बारिकियों को बेहतरीन ढ़ंग से जानने का प्रयास किया। इन सलाहों ने आगे चलकर उन्हें कंपनी के लिए अच्छे निर्णय लेने में काफी मदद की। प्रारम्भ में ओयो रूम्स को लगातार ग्राहक मिलते रहे इसलिए उन्होंने लगभग दर्जन भर होटलों के साथ समझौता कर लिया।
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इस बार रीतेश की मेहनत रंग लाई और सबकुछ वैसा ही हुआ जैसा वे चाहते थे। किफायती दामों पर बेहतरीन सुविधाओं के साथ ट्रैवलर्स को यह सेवा बहुत पसंद आने लगी। धीरे-धीरे ग्राहकों कि मांगो को पूरा करने के लिए कंपनी में कर्मचारियों की संख्या 2 से 15, 15 से 25 कर दी गई। वर्तमान में ओयो में कर्मचारियों की संख्या 1500 से भी ज्यादा हैं।
कंपनी के स्थापित होने के एक वर्ष बाद, 2014 में ही दो बड़ी कंपनियों Lightspeed Venture Partners (LSVP) एवं DSG Consumer Partners ने Oyo Rooms में 4 करोड़ रूपये का निवेश किया। वर्तमान वर्ष 2016 में, जापान की बहुराष्ट्रीय कंपनी Softbank ने भी 7 अरब रूपयें का निवेश किया है। जो कि एक नई कंपनी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी है।
वह बात जिसने रीतेश अग्रवाल को कंपनी को और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है, वह है- हर महीने ग्राहकों द्वारा 1 करोड़ रूपये से भी ज्यादा की जाने वाली बुकिंग।
आज मात्र 2 वर्षों में Oyo Rooms 15000 से भी ज्यादा होटलो की श्रृंखला (1000000 कमरों) के साथ देश की सबसे बड़ी आरामदेह एवं सस्ते दामों पर लागों को कमरा उपलब्ध कराने वाली कंपनी बन चुकी है। रीतेश अग्रवाल की यह कंपनी भारत के शीर्ष स्टार्ट-अप कंपनियों में से एक हैं। इसी वर्ष कंपनी ने मलेशिया में भी अपनी सेवाएं देना प्रारम्भ कर दिया है और आने वाले समय में अन्य देशों में भी अपनी पहुँच बनाने जा रही है।
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इसी माह (2 July, 2016), प्रतिष्ठीत अंतराष्ट्रीय मैगज़ीन GQ  (Gentlemen’s Quarterly) ने रितेश अग्रवाल को 50 Most Influential Young Indians: Innovators की सूची में शामिल किया है। इस सूची में उन युवा इनोवेटर्स को शामिल किया जाता है जो अपनी नई सोच व विचारों से लोगों की जिंदगी को आसान बनाते है।
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कैसे एक भिखारी ने खड़ी की करोड़ों की कंपनी – Renuka Aradhya Rags to Riches Story In Hindi

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यह एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो अपनी मेहनत और लगन के बलबूते एक भिखारी से करोड़पति बन गया| जहाँ कभी वह घर-घर जाकर भीख माँगा करता था, आज न केवल उसकी कंपनी का टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है बल्कि उसकी कंपनी की वजह से 150 अन्य घरों में भी चूल्हा जलता है|
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INSPIRATIONAL SUCCESS STORY OF RENUKA ARADHYA ENTREPRENEUR

हम बात कर रहे हैं रेणुका अराध्य की, जिनकी उम्र अब 50 वर्ष की हो गयी है| उनकी जिंदगी की शुरुआत हुई बेंगालुरू के निकट अनेकाल तालुक के गोपासन्द्र  गाँव से| उनके पिता एक छोटे से स्थानीय मंदिर के पुजारी थे, जो अपने परिवार की जीविका के लिए दान-पूण्य से मिले पैसों पर से चलाते थे| दान-पुण्य के पैसों से उनका घर नहीं चल पाता था इसलिए वे आस-पास गाँवों में जा-जाकर भिक्षा में अनाज माँग कर लाते| फिर उसी अनाज को बाज़ार में बेचकर जो पैसे मिलते उससे जैसे-तैसे अपने परिवार का पालन-पोषण करते|
रेणुका भी भिक्षा माँगने में अपने पिता की मदद करते| पर परिवार की हालात यहाँ तक खराब हो गई कि छठी कक्षा के बाद एक पुजारी होने के नाते रोज पूजा-पाठ करने के बाद भी उन्हें कई घरों में जाकर नौकर का भी काम करना पड़ता|
जल्दी ही उनके पिता ने उन्हें चिकपेट के एक आश्रम में डाल दिया, जहाँ उन्हें वेद और संस्कृत की पढ़ाई करनी पड़ती थी और सिर्फ दो वक्त ही भोजन मिलता था – एक सुबह 8 बजे और एक रात को 8 बजे| इससे वो भूखे ही रह जाते और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते| पेट भरने के लिए वो पूजा, शादी और समाराहों में जाना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें अपने सीनियर्स के व्यतिगत कामों को भी करना पड़ता| परिणामस्वरूप, वो दसवीं की परीक्षा में फ़ैल हो गए।
फिर उनके पिता के देहांत और बड़े भाई के घर छोड़ देने से, अपनी माँ और बहन की जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई| पर उन्होंने यह दिखा दिया कि मुसीबत की घडी में भी वे अपनी जिम्मेदारियों से मुह नहीं मोड़ते|
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और इसी के साथ वे निकल पड़े आजीविका कमाने की एक बहुत लंबी लड़ाई पर| जिसमें उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा,  अपनी निराशाओं से जूझना पड़ा और धक्के पर  धक्के खाने पड़े|
इस राह पर न जाने उन्हें कैसे-कैसे काम करने पड़े जैसे, प्लास्टिक बनाने के कारखाने में और श्याम सुन्दर ट्रेडिंग कंपनी में एक मजदूर की हैसियत से, सिर्फ 600 रु के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड के रूप में, सिर्फ 15 रूपये प्रति पेड़ के लिए नारियल के पेड़ पर चढ़ने वाले एक माली के रूप में|
पर उनकी कुछ बेहतर कर गुजरने की ललक ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा और इसलिए उन्होंने कई बार कुछ खुद का करने का भी सोचा| एक बार उन्होंने घर-घर जाकर बैगों और सूटकेसों के कवर सिलने का काम शुरू किया, जिसमें उन्हें 30,000 रुपयों का घाटा हुआ|
उनके जीवन ने तब जाकर एक करवट ली जब उन्होंने सब कुछ छोड़कर एक ड्राइवर बनने का फैसला लिया| पर उनके पास ड्राइवरी सिखने के भी पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने कुछ उधार लेकर और अपने शादी को अंगूठी को गिरवी रखकर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया|

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इसके बाद उन्हें लगा की अब सब ठीक हो जाएगा, पर किस्मत ने उन्हें एक और झटका दिया जब गाड़ी में धक्का लगा देने की वजह से उन्हें अपनी पहली ड्राइवर की नौकरी से कुछ ही घंटों में हाथ धोना पड़ा|
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पर एक सज्जन टैक्सी ऑपरेटर ने उन्हें एक मौक़ा दिया और बदले में रेणुका ने बिना पैसे के ही उनके लिए गाड़ी चलाई, ताकि वो खुद को साबित कर सके| वे दिन भर काम करते और रात-रात भर जागकर गाड़ी को चलाने का अभ्यास करते| उन्होंने ठान लिया कि,
चाहे जो हो जाए, मैं इस बार वापस सिक्योरिटी गार्ड का काम नहीं करूँगा और एक अच्छा ड्राइवर बन कर रहूँगा”

वो अपने यात्रियों का हमेशा ही ध्यान रखते, जिससे उन पर लोगों का विश्वास जमता गया और ड्राइवर के रूप में उनकी माँग बढ़ती ही गई| वे यात्रियों के अलावा हॉस्पिटल से लाशों को उनके घरों तक भी पहुँचाते थे| वे कहते हैं,
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लाशों को घर तक पहुँचाने और उसके तुरंत बाद यात्रियों को तीर्थ ले जाने से मुझे एक बहुत बड़ी सीख मिली की जीवन और मौत एक बहुत लंबी यात्रा के दो छोर ही तो हैं और यदि आपको जीवन में सफल होना है तो किसी भी मौके को जाने न दें”

पहले तो वे 4 वर्षों तक एक ट्रेवल कंपनी में काम करते रहे उसके बाद वे उस ट्रेवल कमपनी को छोड़कर वे एक दूसरी ट्रेवल कंपनी में गए, जहाँ उन्हें विदेशी यात्रियों को घुमाने का मौक़ा मिला। विदेशी यात्रियों से उन्हें डॉलर में टिप मिलती थी| लगातार 4 वर्षों तक यूँ ही टिप अर्जित करते-करते और अपनी पत्नी के पीएफ की मदद से उन्होंने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर ‘सिटी सफारी’ नाम की एक कंपनी खोली| इसी कंपनी में आगे जाकर वे मैनेजर बने|
उनकी जगह कोई और होता तो शायद इतने पर ही संतुष्ट हो जाता, पर उन्हें अपनी सीमाओं को परखने को परखने की ठान रखी थी| इसलिए उन्होनें लोन पर एक ‘इंडिका” कार ली, जिसके सिर्फ डेढ़ वर्ष बाद एक और कार ली|
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रेणुका और उनकी पत्नी, जब आराध्य ने अपनी पहली कार खरीदी
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इन कारों की मदद से उन्होंने 2 वर्षों तक ‘स्पॉट सिटी टैक्सी’ में काम किया| पर उन्होंने सोचा
अभी मेरी मंजिल दूर है और मुझे खुद की एक ट्रेवल/ट्रांसपोर्ट कंपनी बनानी है”
कहते हैं न की किस्मत भी हिम्मतवालों का ही साथ देती है| ऐसा ही कुछ रेणुका साथ हुआ जब उन्हें यह पता चला कि ‘इंडियन सिटी टैक्सी’ नाम की एक कंपनी बिकने वाली है| सन 2006 में उन्होंने उस कंपनी को 6,50,000 रुपयों में खरीद ली, जिसके लिए उन्हें अपने सभी कारों को बेचना पड़ा| उन्हीं के शब्दों में,
मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा जोखिम लिया, पर वही जोखिम आज मुझे कहाँ से कहाँ लेकर आ गया”
 उन्होंने अपनी उस कंपनी का नाम बदलकर ‘प्रवासी कैब्स’ रख दिया| उनके बाद वे सफलता की और आगे बढ़ते गए| सबसे पहले  ‘अमेज़न इंडिया’ ने प्रमोशन के लिए रेणुका की कंपनी को चुना| उसके बाद रेणुका ने अपनी  कंपनी को आगे बढ़ाने में जी-जान लगा दिया| धीरे-धीरे उनके कई और नामी-गिरामी ग्राहक बन गए, जैसे वालमार्ट, अकामाई, जनरल मोटर्स, आदि|
इसके बाद उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा और सफलता की ओर उनके कदम बढ़ते ही गए| पर उन्होंने कभी भी सीखना बंद नहीं किया| उनकी कंपनी इतनी मजबूत हो गई कि जहाँ कई और टैक्सी कंपनियाँ ‘ओला’ और ‘उबेर’ के आने से बंद हो गई, उनकी कंपनी फिर भी सफलता की ओर आगे बढ़ रही है| आज उनकी कंपनी की 1000 से ज्यादा कारें चलती है|
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आज वे तीन स्टार्टअप के डायरेक्टर हैं और तीन वर्षों में उनका 100 करोड़ के आँकड़े को छूने की उम्मीद है, जिसके बाद वो आईपीओ की ओर आगे बढ़ेंगे|
कौन सोच सकता था कि बचपन में घर-घर जाकर अनाज मांगने वाला लड़का जो 10वीं कक्षा में फ़ैल हो गया था और जिसके पास खुद का एक रूपया नहीं था वह आज 30 करोड़ की कंपनी का मालिक है| 
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विकलांगता से IAS Topper तक की कहानी – Ira Singhal Success Story In Hindi

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IAS – UPSC Civil Services Exams! इसकी प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि हर वर्ष लाखों विद्यार्थी IAS Officer बनने के लिए यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा देते है, लेकिन मुश्किल से .025% विद्यार्थी ही IAS Officer बन पाते है|
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Civil Services Exams की Final Success Rate सामान्यत: .30% के करीब होती है जिसमें से भी सबसे प्रतिष्ठित Indian Administrative Services की Success Rate सामान्यत: .025% से भी कम होती है|
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लेकिन जिनके हौसले बुलंद होते है, वे मुश्किलों से डरते नहीं और सफलता को उनके आगे झुकना ही पड़ता|
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UPSC Civil Services Exam 2014 के नतीजे कुछ खास रहे क्योंकि पहले 4 स्थानों पर लड़कियों ने बाजी मारी और उसमें से भी पहले स्थान पर एक ऐसी लड़की सफल हुई, जिसका 60% शरीर विकलांग है|
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Ira Singhal ने UPSC Civil Service Exams 2014 में सर्वोच्च स्थान हासिल कर यह साबित कर दिया है कि मेहनत और बुलंद हौसलों के आगे विकलांगता बहुत कमजोर है|
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इरा सिंघल को अपनी विकलांगता के कारण कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी|
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इरा सिंघल ने 2010 में ही सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी और वे Indian Revenue Service – IRS पद पर नियुक्ति की हकदार थी लेकिन शारीरिक रूप से विकलांग होने के कारण डिपार्टमेंट ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने Central Administrative Tribunal (CAT)  में मामला दर्ज कराया |
CAT का फैसला IRA Singhal के पक्ष में आया और उन्हें Assistant Commissioner of Customs and Central Excise Service (IRS) पर नियुक्त किया गया|
कई मुसीबतों के बावजूद इरा सिंघल ने प्रयास जारी रख और फिर से सिविल सेवा की परीक्षा दी| उन्होंने 2014 Civil Service Exam में Top कर, फिर से यह साबित कर दिया कि भले ही वे शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर है लेकिन मानसिक रूप से वे बेहद शक्तिशाली है|
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इरा सिंघल महिलाओं, बच्चों और शारीरिक रूप से असक्षम लोगों के कल्याण के लिए कार्य करना चाहती है|
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आज हमें इरा सिंघल जैसे लोगों पर गर्व होता है, क्योंकि ऐसे लोग हर बार यह साबित कर देते है कि – नामुनकिन कुछ भी नहीं – Nothing is Impossible| Ira Singhal ने यह साबित किया है कि उनके बुलंद हौसलों के आगे मुसीबतें और विकलांगता बहुत कमजोर है|
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